ऋषीश्वर परिचय

परिचय :- ऋषीश्वर दर्पण ग्रुप द्वारा जो जानकारी प्रस्तुत की जा रही है वह काफी परिश्रम और शोध के बाद उपलब्ध होसकी है। ग्रुप के सदस्यों ने वर्ष 2003-2004 में कई ग्रंथो का अवलोकन किया तथा नाशिक और अजमेर जिले का भ्रमण भी किया| अजमेर में समाज के पटिया (वंशावली लेखक )के पास उपलब्ध प्राचीन ग्रंथों से महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई। इन ग्रंथों के अनुसार ऋषीश्वर पंचगौड़ शाखा के ब्राह्मण हैं जो त्रेतायुग के अंत में नाशिक चले गए थे। इसका समय धर्मश्री सम्वत बताया गया है जो अनुमानतः त्रेता के अंत या द्वापर के प्रारंभ में था। नाशिक से मथुरा आने का समय पिन्ट्री सम्वत दर्ज है जो विक्रम संवत के पहले का है। मथुरा में सभी पूर्वज नहीँ आये थे यह भी स्पष्ट है लेकिन बाकि पूर्वज कब और कहां पर बसे थे इसकी जानकारी नहीं मिली। समाज के कुछ विद्वानों का मत है कि छिंदवाड़ा ,अमरावती और उन्नाव में जो समाज  है वे ही नाशिक से बाद में आकर बसे थे। नाशिक में भी यह जानकारी लेने का प्रयास किया गया था कि वहाँ समाज की उपस्थिति है या नहीं ,काफीखोज बीन के बाद भी नाशिक या आसपास ऋषीश्वर समाज की मौजूदगी नहीं मिली ।नाशिक में जो ब्राह्मण हैं वे वेद, शाखा –सूत्र के नाम से अपनी पहचान बताते हैं। ऋषीश्वर नाम वहां अपरिचित है। *प्राचीन पुस्तक में यह भी जानकारी मिली कि ऋषीश्वरों केऋषि-वशिष्ठजी, खेरा-नाशिक ,गंगा-गोदावरी, वेद-यजुर्वेद, उपवेद-धनुर्वेद, शाखा-माध्यन्दिन, सूत्र-कात्यायन, प्रवर-त्रिय, शिखा-दाहिनी, पाद-दाहिना, देवता-शिवजी, कुलदेवी-सरस्वती, तिलक-त्रिपुण्ड वृक्ष-पीपल है। इसी पुस्तक से यह प्रमाण भी मिला कि ऋषीश्वर ब्राह्मणों का खेरा नाशिक अवश्य है परन्तु वे दक्षिणी ब्राह्मण नहीँ हैं। ऋषीश्वर पंच गौड़ों में आदि गौड़ शाखा के ब्राह्मण हैं तथा ऋषीश्वर उनकी उपाधि है। ऋषीश्वरों के जो गोत्र आदि हैं वे भी आदि गौड़ शाखा से मिलतेहैं।                                                                                                                                             * ब्राह्मणोंत्पत्ति मार्तंड ग्रन्थ के अनुसार भारत में प्रमुख  रूप से पंचगौड़ –सारस्वत, कान्यकुब्ज ,गौड़, उत्कल, मैथिल तथा पंचद्रविण-कर्नाटका, द्राविन, महाराष्ट्र, तैलंग ,गुर्जर ब्राह्मण हैं। गौड़ के अंतर्गत आदि गौड़ भी आते हैं ,आदि गौड़ की 15 शाखाएँ हैं ‌‌1-मांडव्य 2-लम्भित 3-नैगम 4-गौतम 5-हर्ष गौड़ 6-गंगपुत्र 7-हरयाना 8-वाल्मिकि 9-वशिष्ठ 10-सौरभ 11-दालभ्य 12-सुखसेन 13-भट्ट्केश्वर14-सूर्यध्वज 15-माथुर ।इनमेंवशिष्ठ गौड़ शाखा ही ऋषीश्वर ब्राह्मणों की है । यह समस्त जानकारी सभी ऋषीश्वर बन्धुओं को सदा स्मरण रखना चाहिए।                                     ऋषीश्वर , ऋषि और ईश्वर के संयुक्तिकरण से बनता है, जैसे मुनि से मुनीश्वर ,जो ऋषि, अन्य ऋषियों से विशेष योग्यता रखते थे और अधिक तेजस्वी थे उन्हें ऋषीश्वर सम्बोधित किया गया।ऋषि वशिष्ठआदि सप्तऋषि, अगस्त्य ,याज्ञवल्क्य, कर्दम आदि ऋषियों को इस श्रेणी में रखा गया। जिन ऋषियों ने लोककल्याण के लिए अपना तपचिन्तन समर्पित किया और पौरोहित्य कर्म तक सीमित नहीं रखा उन्हें ऋषीश्वर कहा गया।                                                                *ᅠऋषीश्वर ब्राह्मणों में यह शब्द पद या उपाधि का प्रतीक है। ऋषीश्वर ब्राह्मण वशिष्ठजी के वंशज हैं और उन्ही की चिंतन परम्परा का पालन करते हुए लोककल्याण व परमतत्व चिन्तन का मार्ग अपनाया है। ऋषीश्वर पद का धारण वशिष्ठजी के वंशज ही करते रहे हैं। वशिष्ठजी ने सूर्यवंश का पुरोहित बनना केवल इसी आधार पर स्वीकार किया था कि इस वंश में भगवान का अवतार इस वंश के रामजी के स्वरूप में होने वाला था अन्यथा वे पुरोहित कर्म को पसन्द नही करते थे। रावण वध के पश्चात वशिष्ठ जी तप के लिए चले गए थे और रामजी ने शुध्दियज्ञ कराया था जो सफल नहीं हुआ था। तब वशिष्ठजी के वंशजों को यज्ञ सफल करने को बुलाया गया जिन्होंने यज्ञ सफल कराया। सभी ब्राह्मणों को दान आदि भी दिए गए पर वशिष्ठजी के वंशजों ने दान नही लिया, इस पर रामजी ने उन्हें ऋषीश्वर कहकर संबोधित किया तब से यह शब्द ब्राह्मणों की उपाधि के रूप में प्रचलन में  आया।।       *                              ऋषीश्वर ब्राह्मण भी सभी ऋषियों की तरह हिमालय उत्तराखण्ड के निवासी थे जो कालक्रम के अनुसार मैदानी क्षेत्रों में बसे थे। रामचन्द्रजी के समय में ऋषीश्वरों का निवास उत्तर भारत ही रहा लेकिन त्रेतायुग के अंत के धर्मश्री सम्वत 11 में इन्होंने गौतम ऋषि की तपोभूमि नाशिक के लिए प्रस्थान किया था। वहाँ जाने का उद्देश्य तपस्या करना और अधर्मियों का नाश कर धर्म की स्थापना करना था। ऋषीश्वर ब्राह्मण यजुर्वेद की शुक्ल शाखा के अनुयायी हैं तथा धनुर्वेद इनका उपवेद है। यजुर्वेद शाखाध्यायी के होने से जहाँ यज्ञ आदि का उन्हें विशेष ज्ञान उन्हें था वहीँ धनुर्वेद के ज्ञाता होने से अस्त्रशस्त्र का निर्माण व संचालन में प्रवीणता प्राप्त थी। यज्ञादि तथा युद्धकला दोनों में प्रवीण होने से वे अधर्मियों का नाश करने और स्वयं की रक्षा करने में सदा समर्थ रहे। अपरिग्रही जीवन, निर्भय विचरण, नियमित यज्ञादि कार्य व वेदपाठ करना एवं सनातन धर्म की ध्वजा को ऊँचा उठाए रखना ही इनका जीवन था। अपने तपोबल व बाहुबल से ऋषीश्वरों ने अधर्मियों और अत्याचारियों को खदेड़ा और धर्म का परचम लहराया। ऋषीश्वर ब्राह्मणों को अपने क्षेत्र में बसाने के लिए राजाओं की ओर से आमंत्रित किया जाता था।                                               * नाशिक क्षेत्र में दीर्घकाल तक प्रवास करने के पश्चात मथुरा में सुख शांति स्थापित करने के लिए तथा धर्म का प्रभाव बढ़ाने के लिए ऋषीश्वर ब्राह्मणों को मथुरा (तत्कालीन शूरसेनि जनपद) से आमंत्रण मिला।नाशिक में उस समय इन्द्रजीत व सूरतराम दो मुखिया थे ,इनमें से इन्द्रजीत के साथ कुछ लोग वहीँ रह गए तथा सूरतराम के साथ काफी लोग 84 बैलगाड़ियों में भरकर पिन्ट्री सम्वत 911 में (विक्रमी सम्वत के पूर्व )मथुरा आ गए। मथुरा आकर इन्होंने धर्म की स्थापना में सहयोग किया तथा सम्मानपूर्वक इन्हें 84 खेरे प्रदान किए गए। शूरसेनि जनपद काफी विस्तार में था जो आज के उत्तरप्रदेश,  मध्यप्रदेश और राजस्थान का बड़ा हिस्सा था विभिन्न क्षेत्रों में ऋषीश्वर ब्राह्मणों ने अपने खेरे स्थापित किए। उस समय कई गोत्रों के बंधूजन ने इन खेरों को बसाया था।

*                               जब मुस्लिम विदेशी आक्रमणकारियों का प्रवेश भारत की भूमि पर हुआ तो ऋषीश्वर ब्राह्मणों को भी इनसे युद्ध करना पड़ा और विस्थापन की प्रक्रिया भी शुरू करनी पड़ी । काफी ब्राह्मण वीरगति को भी प्राप्त हुए। जब 11वीं सदी में इस्लामिक आक्रमणकारी आये तो उन्होंने धनसमृद्धि के साथसाथ हिन्दू धर्म को भी नुकसान पहुंचाया। धर्मरक्षा में ब्राह्मणों ने भी अपना योगदान दिया ,साथ में ऋषीश्वर ब्राह्मणों ने भी प्राण की बाजी लगाकर धर्मरक्षा का प्रयास किया।

*           सम्वत 1232 में मथुरा से ऋषीश्वर ब्राह्मणों के प्रस्थान का उल्लेख मिलता है। इस समय 18 परिवार जुगलराज ऋषीश्वर के नेतृत्व में धौलपुर आकर बस गए जबकि कुछ परिवार सिद्धलपुर चले गए। कुछ परिवार आगरा एवं शेष मथुरा में ही रह गए।धौलपुर में रहने वाले ब्राह्मणों को मुसलमानों से भारी युद्ध करना पड़ा। सम्वत 1260 में लालखां मुसलमान से युद्ध में 7 ब्राह्मण वीरगति को प्राप्त हुए। लेकिन मुसलमानों को मार भगाया ऐसा उल्लेख ग्रंथों में मिलता है  ।सम्वत 1310 में धौलपुर में मुसलमानों से बड़ी लड़ाई हुई जिसमें 500 मुसलमान मारे गए तथा 138 ऋषीश्वर वीरगति को प्राप्त हुए। इनमें 11 गौतम, 13 तिवारी, 5पाराशर, 7 श्रोती, 10ढमोले,16 जोशी,5 भारद्वाज, 7मुद्गल, 4सागोरिया, 10पचौरी, 5सिंघोलिया, 7सड़वारिया, 5कांकोरिया, 11बेरीबार, 6चौबे, 8सीरोठिया, 3डभरैया, 3मंगोलिया, और 2पिपलानिया थे। इस नरसंहार के बाद ऋषीश्वरों को बड़े पैमाने पर स्थान परिवर्तन करना पड़ा। इसके बाद सभी भिण्ड, मुरैना, इटावा, ग्वालियर, गुना ,उन्नाव, छिंदवाड़ा आदि स्थानों पर बसते चले गए। जानकारी के अनुसार मुरैना क्षेत्र में सर्वप्रथम प्रवेश किया गया तथा उसैथ, रिठौरा, कुम्हेरी, हड़वासी, तुतवास, क्वारीविंडवा आदिगांवों में बसे थे। उसी समय भिण्ड  जिले के अकोड़ा,   चपरा,  मटघेना, परसोना आदि में बसे थे। गौतम- महरौली, पाराशर- फिरोजपुर, भारद्वाज- झार ,ढमोले- देवरी, बिरथरिया- चपरा, सड़वारिया और कांकोरिया- अंजनीखेड़ा, सागोरिया और   सिंघोलिया-  बसई ,  फुसेंतिया- रिठौरा, दीक्षित- सिंहोंनिया, चौबे-भदाकुर, मंगोलिया-परसोना, मुदगल, पचौरी-खरकोली, खड़ौलीया-क्वारीविंडवा, तिवारी-तुतवास,जोशी-उसैथ और उपाध्याय-मटघेना में बसे थेवर्तमान में भिण्ड जिले में 35, मुरैना में 70, छिंदवाड़ा में 45 ,उन्नावमें 14, इटावामें 20 और गुना जिले में 19 स्थानों पर काफी लंबी अवधि से ऋषीश्वर निवास कर रहे हैं। इनके अलावा बड़े शहरी केंद्र के रूप में ग्वालियर (1500 परिवार) उज्जैन, इंदौर, भोपाल, शिवपुरी ,दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, अहमदाबाद आदि जगहों पर स्थायी निवास हो गए हैं।

*ᅠआज का ऋषीश्वर समाज काफी प्रगतिशील समाज है जहां काफी संख्या में डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, वकील, पुलिस, मिलिट्रीमैन, कॉन्ट्रेक्टर, बिजनिस आदि क्षेत्रों में कार्यरत हैं और दूरदराज तक (विदेश में भी) रहे हैं। उच्च      शिक्षा के लिए काफी प्रतिभाएं विभिन्न संस्थानों में अध्ययनरत हैं। आज समाज के बंधुजन अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए भरसक प्रयत्न कर रहे हैं। कन्याओं की शिक्षा पर भी अब काफी ध्यान दिया जा रहा है। उन्हें उच्च शिक्षा दिलाने के लिए काफी परिवारों ने बेहतर प्रयास किया है। लेकिन आज समाज के काफी लोग दूरदराज तक विस्तारित हो गए हैं। ऐसे में एक दूसरे से परिचय रखना और मेलजोल बढ़ाना आसान नहीं रहा है। सभी को संगठित रखने और एकता कायम रखने के लिए आधुनिक तकनीक का सहारा लेना आवश्यक हो गया है। जिससे आपस में मेलजोल बना रहे और समाज जानकारीबनी रहे। इसी दृष्टि से ऋषीश्वर दर्पण ग्रुप द्वारा हिन्दी वेबसाइट का प्रारम्भ भी किया गया है

ऋषीश्वर ब्राह्मण निवास स्थान

मध्यप्रदेश: जिला भिण्ड– भिण्ड– अकोड़ा– चरथर– जामना– विर्धनपुरा– दबोहा– फूप– पाली– भीमपुरा– सकराया– मेहगांव – इमलिया- गुर्जाकापुरा–बिरगवाँ- सिमार–कैरोरा- दैपुरा- गिंगरखी– मानिकपुरा– चपरा– गोहद– गोहदचौराहा– बड़ागर– रमनपुरा– सिरसौदा– बगुलरी– खुर्द– खेरिया–  चन्दहारा– भगवासा- चंदोखर –डांग- भड़ेरा– चन्द्रभान का पुरा- बम्होरा-खनेता   -अमायन                                                                                                             मुरैना जिला: गंज- रामपुर– जींगनी – देवीसिंह का पुरा- सामले सिंह का पुरा-देवरी– पिड़ावली- विण्डवा– बद्री नायब का पुरा-सिकरौदा– हिंगोना– जतावर– भोजराज का पुरा–
जौरा– कुम्हेरी-  हड़वासी- वीरमपुरा- चैना- सांटा– नाहरदोंकी- कांसपुरा– मुंगावली – जाफराबाद– सिंहोरी – खुटियानी– विशनोरी– बांसी– कैमरा– देवगढ़- लालबांस– अधन्नपुरा– अम्बाह चांद का पुरा– अमरपुरा– रूपाहटी–     नदोल का पुरा– भुआ का पुरा– गरीबे का पुरा– लंगड़िहा– वित्त का पुरा– छिधै का पुरा– चिन्ते का पुरा– खांदकापुरा– रामचरण का पुरा-बड़पुरा– जौरा:-बनवरिया– देवहंसकापुरा– मरजादगढ़– जैकन्नकापुरा– बिजुलीपुरा– आमलीपुरा– रुधावली– रुअर– लाहदरिया-लोलकी– हिंगोटियाई-पुरावस कला – सिरमौर का पुरा – बिरहरुआ– पायका पुरा– मोहनपुरा- भाय खां का पुरा– बावरीपुरा–  बरेह– भिडौसा– दोहरी– खड़ियाबेहड़– इकहरा– पंचोली– मिरघान– हरिज्ञान का पुरा– भीमसेन का पुरा-देवलाल का पुरा-     -ऐसाह                                                   जिला ग्वालियरग्वालियर– इकहरा– दुहिया– गुंझार– डबरा– जखा– धमनिका– नाहटौली– मेंगना– रामपुर–                                                        जिला गुना गुना–  आरौन – पतलेश्वर–  रामपुर–  बमौरी– इकोदिया– रुठियाई–  माहुर–  मार की मउ– काकरा–  पटना– नईसराय– बरखेड़ी– तिलीखेड़ा– दोल्ला– सकतपुर– धरनावदा–   जिला विदिशा विदिशा–गंज बासौदा- सिरोंज– रुसल्ली– बमूरिया– लटेरी– मोतीपुर– मुक्ताखेड़ा- सावनखेड़ी– बरखेड़ादेव– कारेदेव–   जिला रायसेन बरेली– जामगढ़–खरगोन–कुण्डाली–   जिला सागर सागर– सिहोरा- करहद– बम्होरी–                जिला शाजापुर-सल्लिया  जिला  सिवनी– सिवनी–  पिपरियाछोटी–  अमरवाड़ा– पाटनी– सौंसर– सिंगौड़ी–                                                                                       जिला छिंदवाड़ा छिंदवाड़ा– चौरई– उमरिया –पलटवाड़ा– ककई– बरेलीपार– नवेगांव– कामता– चन्दनवाड़ा– लुगसी– घुरैया– सांवरी– थांवरी– कुडा– रामगढ़– गोपालपुरा– पिपरिया– बगदरी– हथनी– कपूरदा– माचीवाड़ा– सलखनी– विलन्दा– सुजरना– घोड़ाबाड़ी– समसवाड़ा– सिमरिया–– दुगरिया– मोहगांव– चांदमेटा– हरनमटा– पलासिया– नूटन– चिखड़ी– दैलाखाड़ी– बड़कुट्टी– इकहरा– बीजाबाड़ी– पगारा– जुनारदेव– बिछुआ– रावनपारा– पालहरी– भोगांव     –मध्य्प्रदेश के अन्यस्थानउज्जैनतरानाआगरधारकुंजरोदजबलपुरभोपालशिवपुरीश्योपुरदेवासइन्दौरसनावदशाजापुरराजगढ़पचोर –राघौगढ – खरगोनबड़वानीझाबुआमन्दसौर रायपुर- बालाघाटअशोकनगर                                   उत्तरप्रदेश जिला इटावा– इटावा– भरथना– कंढैया– हर्राजपुरा– रमपुरा– बकेवर– बहालियन का नगरा– नया नगरा– विशनामऊ – सिरसा– जैतपुरा– तुला का नगरा– निवाड़ी कलां– अहेरीपुर– बहेड़ा– जखोली– जखोली का नगला– चिकनी– मुडेंना– टकपुरा–   जिला उन्नावउन्नाव– देवगांव– सफीपुर– अरेरकलां– भैंसारा– निहालपुर– लगसेसरा– मावईब्राह्मण – छोटीसरस– लिधौसी– मद्दूखेड़ा– बृजपालपुर– सांथीनगर– मुछखेड़ा–           जिला आगराआगरा –पिपरावली– गड़ूपुरा-  हुल्लकापुरा– बाजकापुरा– सांवलदासकापुरा– बढ़ापुरा– पिनाहट–  जिला जालौन– जालौन– सिकरी– सहाब। – लहचूरा–   जिला मथुरा मथुरा-वृन्दावन– बेरूकीगढ़ी– हरीकीगढ़ी– नगलाजगराम रूपधनु– गड़ूझरा– केटियापुरा– कंचनपुरा–                      जिला हरदोई सहादतनगर– संडीला– जिला एटा– एटा– सराय– मसेरी– रामगढ़ी– लोहरा– नोराई–सुजराई– सजावल–सोहार– नरौरी– जलालपुर– सुमेरनगला– नगरिया  उत्तरप्रदेश के अन्य स्थानलखनऊकानपुरग्रेटर नोएडापीलिभीत –शाह्जहांपुर – बंदायू –दिबियापुर–                   राजस्थान: जिला भरतपुर   भरतपुर–    जगमोहनपुरा– पराय– जरगहां – नीमडांडा–  जिला सीकर– माधोपुर– राजोली –कुली– केलिया– पड़ापोली–  जिला सवाई माधोपुर वीसलपुर- सावनिया– पुलु– धनसार– कठोर–  जिला जालौर सराना– मोकलपुर– हरजी– दयालपुर– राजस्थान के अन्यस्थान– कोटा– जयपुर– सालपुर कवाई– बारा– अलवर– मंगलपुर  महाराष्ट्र मुम्बईपूनाअमरावतीनाशिककोल्हापुरसांगलीमनमाडधूलिया–      भारत  के अन्य शहरनईदिल्लीहरिद्वारऋषिकेशगुरुग्रामबड़ौदासूरतअहमदाबादराजकोटबेंगलोर

ऋषीश्वर ब्राह्मण 72 गोत्र

गोत्र/ उपनाम          ॠषि

  1. गौतम———–गौतम

  2. भारद्वाज——भारद्वाज

  3. मुद्गल————मुद्गल

  4. पाराशर——-पाराशर

  5. चौबे———चन्द्रायण

  6. बिरथरिया——विन्ध्य

  7. सिंघेचिया——अंगिरा

  8. पचौरी———पाणिनि

  9. दीक्षित————दक्षः

  10. दुबे————-उपमन्यु

  11. जोशी——-याज्ञवल्क्य

  12. रावत————–उत्तंग

  13. सावरण———-सावर्ण

  14. घृतकुल——–धनञ्जय

  15. उपाध्याय —– उद्धालक

  16. मुखरैया ——- मधुछंदा

  17. श्रोत्रिय(सोती) शक्ति

  18. थापक——-  कश्यप

  19. सनेधिया—— सिव्हल

  20. ढमोले ——– धौम्य 

  21. सिंघौलिया—– श्रंगी  

  22. तिवारी—— अगस्त्य

  23. माद्र ———–      मैत्रेय  

  24. सागौरिया —–   सांकृत 

  25. सड़वारिया  शांडिल्य

  26. दिघरौतिया—— दधिचि 

  27. कुड.रिहा ——– कौडन्य 

  28. बेरीबार —— वैशम्पायन

  29. पटुलिहा — — पौण्डरिक

  30. नगाइच —— नारायण  

  31. बढ़ेले ———– वत्स    

  32. लुहोरिया —– लोकांक्षी  

  33. मंगोलिया——- मातंग   

  34. पिपरोनिया—-पिपलायन

  35. फुसेंतिया —— पुलस्त्य

  36. सीरोठिया——— च्यवन

  37. मुडारे ——— मित्रभुव 

  38. कटारे———- कौत्स  

  39. कुट्टिभा —— कपिल 

  40. खडौलिया—– कौशिक

  41. बौहरे ——— व्रृहद 

  42. अहेलिया———–अत्रि

  43. चितौरिया——-चित्रायन

  44. छौलिहा——–अघमर्षण

  45. सहवरिया———-शौनक

  46. बिजौरे————–विद्द्य

  47. कांकोरिया—–कात्यायन

  48. मामोलिया——-मैत्रायन

  49. पारमल———–पुलस्त्य

  50. भाइलपुरिया———भृगु

  51. सजेरालिया———संजय

  52. कनपुरिया———कणाद

  53. डभरैया——–विभाण्डक

  54. पसोइया———जमदग्नि

  55. सेवरिया————-सुयज्ञ

  56. समाधिया——–सोमवाह

  57. बसेड़िया———–वशिष्ठ

  58. खुड़ासिया—-हिरण्यस्तुप

  59. चिड़रऊआ—-बलच्यवन

  60. दरोईया———–दलाक्ष

  61. दुगोलिया—-देशमुख(दर्भ)

  62. निधौरिया——-विनोदन

  63. महावरिया—– मार्कंडेय 

  64. औठिया———अगस्ती

  65. बबोरिया——-बाच्छिल

  66. डिलमोरिया———द्रुपद

  67. सिनोहा——–सिन्धुदीप

  68. समहदिया—— सुमेधा

  69. धौमरैया——– धौम्य

  70. दिघौतिया—- काश्यप

  71. नारौलिया——- ऋषभ  

  72. मूडौतिया —— मनुस्पति